Sunday, November 21, 2010

मौत

ज़िन्दगी में दो पल 
कोई मेरे पास ना बैठा
आज सब मेरे आस पास 
नज़र आ रहे थे,
कोई तोहफा ना मिला 
आज तक मुझे 
और आज फूल ही फूल 
दिए जा रहे थे,
तरस गया था मैं 
किसी के हाथ से दिए 
छोटे से इक रुमाल को 
और आज नए नए कपडे
ओढ़ाये जा रहे थे,
दो कदम साथ ना चलने को
तैयार था कोई
और आज 
काफिला बना कर जा रहे थे.....
आज पता चला 
कि मौत इतनी हसीन होती है
कमबख्त हम तो 
यूँ ही जिए जा रहे थे!


 
चिट्ठाजगत
रफ़्तार