Sunday, November 21, 2010

मौत

ज़िन्दगी में दो पल 
कोई मेरे पास ना बैठा
आज सब मेरे आस पास 
नज़र आ रहे थे,
कोई तोहफा ना मिला 
आज तक मुझे 
और आज फूल ही फूल 
दिए जा रहे थे,
तरस गया था मैं 
किसी के हाथ से दिए 
छोटे से इक रुमाल को 
और आज नए नए कपडे
ओढ़ाये जा रहे थे,
दो कदम साथ ना चलने को
तैयार था कोई
और आज 
काफिला बना कर जा रहे थे.....
आज पता चला 
कि मौत इतनी हसीन होती है
कमबख्त हम तो 
यूँ ही जिए जा रहे थे!


Saturday, October 16, 2010

क्या वो दिन थे

क्या वो दिन थे...........
माँ की गोद और पापा के कंधे
आज याद आ रहा है सब कुछ
छूटा जो पीछे........... 
रोते रोते वो सो जाना
खुद से बातें करना खो जाना
वो माँ का आवाज़ लगाना 
खाना हाथों से खिलाना
वो दिन भर पापा का रास्ता तकना
जिद पूरी होने का इंतज़ार करना,
क्या वो दिन थे बचपन के सुहाने
क्यों इतनी दूर सब कुछ हो गए,
अब जिद भी अपनी सपने भी अपने
किस से कहें क्या चाहिए.....
मंजिलों को ढूंढ़ते हुए खो गए
क्यों इतने बड़े आज हम हो गए ???
 
चिट्ठाजगत
रफ़्तार