Saturday, October 16, 2010

क्या वो दिन थे

क्या वो दिन थे...........
माँ की गोद और पापा के कंधे
आज याद आ रहा है सब कुछ
छूटा जो पीछे........... 
रोते रोते वो सो जाना
खुद से बातें करना खो जाना
वो माँ का आवाज़ लगाना 
खाना हाथों से खिलाना
वो दिन भर पापा का रास्ता तकना
जिद पूरी होने का इंतज़ार करना,
क्या वो दिन थे बचपन के सुहाने
क्यों इतनी दूर सब कुछ हो गए,
अब जिद भी अपनी सपने भी अपने
किस से कहें क्या चाहिए.....
मंजिलों को ढूंढ़ते हुए खो गए
क्यों इतने बड़े आज हम हो गए ???

8 comments:

प्रतुल वशिष्ठ said...

सुभद्रा कुमारी चौहान की एक कविता है :
बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी
गया ले गया उस जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी.

...... पूरी पढ़ना अच्छा लगेगा.
ऐसा लगेगा जैसे आपके अपने ही भाव हों.

शायद पहले ही पढी हो. लेकिन इस टिप्पणी को अन्यार्थ न लेना. मैं कविता में रस पाता हूँ बस.

http://www.hindikunj.com/2010/04/subhadra-kumari-chauhan-poems.html

Umra Quaidi said...

क्या आप एक उम्र कैदी का जीवन पढना पसंद करेंगे, यदि हाँ तो नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते है :-
1- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html
2- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

Patali-The-Village said...

अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं ।

Unknown said...

बहुत सुंदर.
दशहरा की हार्दिक बधाई ओर शुभकामनाएँ...

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त करने का कष्ट करें

Coral said...

क्यों इतनी दूर सब कुछ हो गए,
अब जिद भी अपनी सपने भी अपने
किस से कहें क्या चाहिए.....
मंजिलों को ढूंढ़ते हुए खो गए
क्यों इतने बड़े आज हम हो गए ???


बड़े बनेकी सजा है ये ....

Satish Saxena said...

आज के समय में अपने माता पिता को याद करने के लिए रचनाये दुर्लभ होती जा रही हैं ! हार्दिक शुभकामनायें !

M VERMA said...

सुन्दर पोस्ट .. शुभकामनाएँ

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